Pages

Tuesday, 7 August 2012

चाँद फिसलकर

अँधेरे  मे
चाँद
फिसलकर
उग आया
मेरी दोनो हथेलियों
के बीच
अंजुरी मे
मै रेशा रेशा
पी पाता चांदनी
कि,
हथेलियों के उत्ताप से
चाँद बह गया
अंजुरी के रंध्रों से
न जाने रेत के  
किस महासमुंद मे

मुकेश इलाहाबादी ------------

No comments:

Post a Comment