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Monday 27 August 2012

गुरु बनाम मेघ ---


तुमने कभी मेघ बरसते देखे हैं। काले भंवराले मदमस्त हरहराते हुये मेघ। जो महीनो एक एक बूंद सागर से नदियों से इकठठा करते हैं, फिर सावन भादों मे अपनी मदमस्त चाल से हरहराकर बरसते हैं और खूब बरसते हैं। तब पूरी धरती जो सूरज की तपन से सूख और चटक गयी होती है, पेड पौधे कुम्हला गये होते होत हैं। हरिया जाते हैं। सारे के सारे पहाड और पर्वत ऐसा लगता है मानो बादल रुपी प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को धानी चुनर ओढा दी हो और तब ज़मी नीचे से और आसमां उपर से मुस्कुरा उठता है, और साथ साथ कायनात भी ......
बस ......
ऐसा ही गुरु को समझो जो जीवन भर मनन से चिंतन से अध्यन से तप से ज्ञान की एक एक अम्रतबूंद इकठठा करता है, और फिर अपने शिष्यों के उपर उडेल देता है पूरा का पूरा बिना कुछ बचाये बादलों सा और फिर खुद आकाश सा खाली होकर मुस्कुराता है अपने शिष्यों के साथ ...
ऐसा ही होता गुरु काले मेघ सा ज्ञान से लबरेज।
लेकिन एक बात जान लो बादल जब बरसता है तो भरपूर बरसता है बिना भेद भाव के वह तो बरसता है बस बरसता है वह पहाड़ हो नदी हो शहर  हो पोखर हो कि कोई खाली गढढा।
बादल बरसता है अपना नेह बरसाता है सब को हरसाता है पर अपनी शान से खडे पर्वत क्या पाते हैं। कुछ देर को हरियाली बस फिर वही निचाट पत्थर का सूनापन जबकि गढढे और पोखर लबालब हो जाते हैं जलकणों से पूरित बहते हूऐ हुलसते हुये।
इसी तरह गुरु के पास जो अपने अहम की पर्वत सी उंचाई के साथ जाता है वह रीता का रीता रह जाता है चटटान सा। अहमी पर्वत सा। लिहाजा जब भी गुरु के पास जाओ खाली पोखर बन जाओ खाली गढढा बन जाओ देखो तुम कितना भर जाओगे और हुलस जाओगे।  फिर तुम भी किसी दिन वाष्पकण बन मेघबन जाओगे और बरसोगे किसी गुरु सा अपने शिष्यों पर बादलों सा काले मेघ सा --------
बस इतना ही जानो तुम मेघों से बरसते बादलों से .....
आप सब को नमन -
मुकेश इलाहाबादी ----------------

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