कभी तनहा भी रहा कीजिये
ज़िन्दगी को यूँ भी जिया कीजिये
ज़रूरी तो नहीं रात भर सोया करें
कुछ देर तारों को भी गिना कीजिये
दोस्तों से तो रोज़ मिला करते हो
कभी हम जैसों से भी मिला कीजिये
बहुत उदास है बुलबुल कफस मे,
चहक सुनने के लिए उसे रिहा कीजिये
ज़िन्दगी कोई गणित का सवाल नहीं
कभी ग़ज़ल की तरह लिखा कीजिये
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
ज़िन्दगी को यूँ भी जिया कीजिये
ज़रूरी तो नहीं रात भर सोया करें
कुछ देर तारों को भी गिना कीजिये
दोस्तों से तो रोज़ मिला करते हो
कभी हम जैसों से भी मिला कीजिये
बहुत उदास है बुलबुल कफस मे,
चहक सुनने के लिए उसे रिहा कीजिये
ज़िन्दगी कोई गणित का सवाल नहीं
कभी ग़ज़ल की तरह लिखा कीजिये
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
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