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Monday, 15 October 2012

कभी तनहा भी रहा कीजिये

कभी  तनहा  भी  रहा  कीजिये
ज़िन्दगी को यूँ भी जिया कीजिये

ज़रूरी तो नहीं रात भर सोया करें
कुछ देर तारों को भी गिना कीजिये

दोस्तों से तो रोज़ मिला करते हो
कभी हम जैसों से भी मिला कीजिये

बहुत उदास है बुलबुल कफस मे,
चहक सुनने के लिए उसे रिहा कीजिये

ज़िन्दगी कोई गणित का सवाल नहीं
कभी ग़ज़ल की तरह लिखा कीजिये

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

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