सूरज के शहर में नंगे पाँव चलते रहे
आग ही पीते रहे आग ही उगलते रहे
कभी गर्दो गुबार कभी वक़्त के थपेड़े
सफरे जीस्त में जाने क्या - 2 सहते रहे
किस्मत अपनी सर्द गरीब की चादर रही
हम कभी सर तो कभी पैर को ढंकते रहे ----
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
आग ही पीते रहे आग ही उगलते रहे
कभी गर्दो गुबार कभी वक़्त के थपेड़े
सफरे जीस्त में जाने क्या - 2 सहते रहे
किस्मत अपनी सर्द गरीब की चादर रही
हम कभी सर तो कभी पैर को ढंकते रहे ----
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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