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Wednesday 13 March 2013

रफ्ता रफ्ता खुल रहे हैं दिले एहसास की किताबों के पन्ने






 रफ्ता रफ्ता खुल रहे हैं दिले एहसास की किताबों के पन्ने
वे पढ़ रहे हैं दिल और हम पढ़ रहे हैं उनकी आखों के पन्ने

वे माजी मे मेरे पढ़ रहे हैं किसी और के नक़्शे कदम
हम उनकी महकती साँसों मे पढ़ रहे हैं वफाओं के पन्ने

नाज़ुकी पे हमने उनकी लिखी थी कुछ नज़्म और ग़ज़लें
मुस्कुरा के हौले हौले पढ़ रहे हैं अपनी अदाओं के पन्ने

होठों पे तबस्सुम , झुकी हुई नज़रें और गरदन पे जुम्बिश
देखते हैं हम उन्हें पलटते हुए मुहब्बत की यादों के पन्ने

मुकेश  इलाहाबादी ------------------------------------------------
रफ्ता रफ्ता खुल रहे हैं दिले एहसास की किताबों के पन्ने
वे पढ़ रहे हैं दिल और हम पढ़ रहे हैं उनकी आखों के पन्ने

वे माजी मे मेरे पढ़ रहे हैं किसी और के नक़्शे कदम
हम उनकी महकती साँसों मे पढ़ रहे हैं वफाओं के पन्ने

नाज़ुकी पे हमने उनकी लिखी थी कुछ नज़्म और ग़ज़लें
मुस्कुरा के हौले हौले पढ़ रहे हैं अपनी अदाओं के पन्ने

होठों पे तबस्सुम , झुकी हुई नज़रें और गरदन पे जुम्बिश
देखते हैं हम उन्हें पलटते हुए मुहब्बत की यादों के पन्ने

मुकेश  इलाहाबादी ------------------------------------------------

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