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Thursday, 18 April 2013

रात तूफानी कटने तो दो


रात  तूफानी  कटने  तो दो
थोड़ी सी  सहर  होने  तो दो
वे  कुछ  और इंतज़ार करलें
मुहब्बत परवान चढ़ने तो दो
भले  काट  लो  तुम सर मेरा
मुझे  सच  बात कहने तो  दो
हवाएं  अब  क्यूँ  नहीं  बहतीं
कुछ  औ  जंगल कटने तो दो
महफ़िल  मे  जान जायेगी
ज़रा  मुकेश को  आने तो दो
मुकेश इलाहाबादी ---------
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