Pages

Wednesday, 17 April 2013

ऐ दिल चल अब कोई साथी ढूंढ लेते हैं


ऐ  दिल  चल अब कोई साथी ढूंढ लेते हैं
कब तक रहूँ  तनहा जिंदगानी ढूंढ लेते हैं
देख  लिया खूब बेवफा जमाने का चलन
हो  जो  जमाने से जुदा  साथी ढूंढ लेते हैं
चंद लम्हों की थी मुलाक़ात एक सफ़र मे
भूला नहीं जिसे अबतक राही ढूंढ लेते हैं
डसा गया हूँ इतना ज़हर मोहरा हो गया
अपने लिये नागिन ज़हरीली ढूंढ लेते हैं
बरसों की प्यास मिटती नहीं किसी तौर
ख़त्म न हो शराब ऐसी शुराही ढूंढ लेते हैं
मुकेश इलाहाबादी --------------------------

No comments:

Post a Comment