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Thursday, 18 April 2013

आज पहाड़ी सुबह कुछ ज्यादा ताजी और धुली धुली नजर आ

 
मित्रो - ये मेरी एक कहानी पहला भाग है - आगे भी पत्र शैली मे चलेगी --
दोस्त,

आज पहाड़ी सुबह कुछ ज्यादा ताजी और धुली धुली नजर आयी, चैट बाक्स मे पडे आपके मैसेज ने उसे कुछ और ही खूबसरत बना दिया।
सुबह की हल्की रोशनी ने ओस के साथ साथ रात की बची खुची खुमारी भी सोख लिया।
फक्त दो दिन की दोस्ती और चैट बाक्स मे हुयी बातो का असर इन खुनखुनाती हवाओं मे घुल घुल के न जाने कैसी तासीर पैदा कर रहा था कि उंगलियां अपने आप मोबाइल के कीपैड से खेलने लगीं और न जाने कव आपके नाम पे रुक गयी जो आपको कॉल कर के ही मानीं।
महज दो तीन वाक्यों मे हुयी बात का असर काफी देर अपने वजूद पे महसूस करता रहा।
न जाने क्यूं लगा आप उस वक्त घबराहट मे या संकोच मे या किसी और कारण से बात नही कर पा रही थी। लिहाजा मैने कॉल को वहीं खत्म करना ही उचित समझा।
फिर दोपहर मे जब आपका मैसेज आया उस वक्त मै कुछ काम मे व्यसत था। खैर ...
इस वक्त शाम का झुटपुटा धीरे धीरे अंधेरे की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में मै देख रहा हूं। बादलों की ओट से सिंदूरी सूरज को, पहाड़ं के पीछे छुपते हुये। पेड़ और इंसान की लम्बी परछाइयों को अंधेर में विलीन होते हुए। पक्षियों को अपने आसियाने में चहचहा कर दुपकते हुये। गिलहरी गिल्लू को फुदक कर पेड़ की खोह में घुसते हुये। इसी के साथ साथ मै भी अपने एकाकीपन में डूब रहा हूं। किसी गहरे तलातल में, जहां खोते जा रहे थे सारे षब्द, सारे भाव, सारे विचार सारी संवेदनाए।
लेकिन इस विलीनता में हो रहा था सब कुछ हौले हौले आहिस्ता आहिस्ता। फिर आहिस्ता से बिदा हो गयी थी सारी बेचैनी। जहां था एक गहन लयबद्ध मौन से आप्लावित किसी शाम की रागनी।
उसी तंद्रा की अवस्था में दूर से आती स्वरलहिरयों की तरह मन के अचेतन से आपका नाम स्पंदित हाने लगा। इस भाव के साथ कि आहिस्ता आहिस्ता परवान चढते इस संबध को किस रुप में लूं किस रुप मे न लूं। कहां तक समझूं कहां तक न समझूं। लेकिन इस होले हौले उभरते हुये विक्षोभ के साथ भी मै, इस अवस्था से निकलना नही चाह रहा था। बहुत देर तक।

इस भाव दषा से उबरने के बाद भी बहुत देर तक सोचता रहा। आपके साथ हो रही आपसी सौहार्द की बातों व हल्की फुल्की चर्चाओं के बारे में। उन बातों के बारे में जिन्हे हम और आप कह सुन लेते हैं। और सोच रहा था अक्सर अपने आप ही अंकुआ जाने वाले कुछ ऐसे संबंधों के बारे में जिन्हे, कोई संज्ञा तो नही दी जा सकती। पर उन संबंधों को यदि आहिस्ता और समझदारी से जिया जाये तो निसंदेह समाज में एक मिसाल कायम करते हैं। चाहे वह वर्तमान में सात्र व सिमॉन द बउवा का रहा हो या कि अम्रता और इमरोज का रहा हो या कि पुराणों में द्रोपदी व क्रष्ण का रहा हो।
हालाकि इन बड़े बड़े नामो से मै अपने आपको नही जोड रहा पर एक बात जरुर है कि फिलहाल हम लोगों को साक्षी भाव से हर घटना व बात को देखना समझना होगा पवित्रता, धैर्यता और विस्वास के साथ।

वैसे इतना जरुर है आपका ये दोस्त उन कसौटियों पे कतई नही खरा उतरता जिन कसौटियों पे एक अच्छे दोस्त को उतरना चाहिये। हां यह जरुर ईमानदारी से कहूंगा कि आप इस दोस्त पे आसानी से विष्वास न करियेगा। ये बहुत छलिया दोस्त है। जो अक्सर अपनी लच्छेदार बातों से लोगो को मोहित करने की कला जानता है। इसलिये आप मेरी कविताओं और बातों से मुझे बहुत अच्छा इन्सान न समझें।
हां ये जरुर है जितनी दूर और देर तक दोस्त रहूंगा ईमानदारी से दोस्त रहूंगा।
वैसे तो कलम अभी रुकना नही चाहती पर एक ही बार मे सब कुछ कह देना व बता देना न तो संभव है और न ही रिश्तों की मजबूती के लिये ठीक होता है।
जो चीज धीरे धीरे पकती है उसकी सुगंध स्वाद और तासीर ही अलग होती है।
एक ही बार मे पूरी आंच दे देने से चीजें नष्ट ही होती हैं चाहे सम्बंध ही क्यूं न हो।
बाकी आप खुद समझदार और दुनियादार हैं।

कम शब्दों मे ज्यादा समझना आपकी विषेषता है।

शुभ्माम्नाओं सहित

तुम्हारा दोस्त

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