मिया मुकेष अब है फाख्ता उड़ा रहे अकेले मे
मिया मुकेष अब है फाख्ता उड़ा रहे अकेले मे
लिख.2 के ग़जल खुद को सुना रहे अकेले मे
हसीनो ने न दी तवज्जो उनकी गजलों को
अब ख्वाबों की परियां बुला रहें हैं अकेले मे
तंग आके बीबी बच्चों संग जा बैठी मॉयके मे
मायूस से फ्रेंचकटिया दाढी खुजा रहे अकेले मे
सुबह से वो हंसीन पडोसन भी न दिख रही
चाय संग सिगरेट के छल्ले उडा रहे अकेले मे
नई गजल के लिये कोई मतला भी न मिला
लिहाजा पुरानी गजल गुनगुना रहे अकेले मे
मुकेष इलाहाबादी ..................
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