हा हा हा -----
काश ! दिल बहलाने की भी कोई दवा होती,
रोज़ रोज़ तुमसे ये झगडा झंझट तो न होती
गर तुम्हारे मेकअप पे इतना खर्चा ना होता
न मेरे ऊपर ऑफिस और बैंक का कर्जा होता
गर ससुर ने तुम्हारे अलावा कुछ और छोड़ा
हमारे पास भी एक मोटरऔर बँगला होता
गर मेरे बापू को तुम पसंद न आयी होती तो
ज़रूर पड़ोसन से हमारा निकाह हो गया होता
तुम्हारा निशाना इतना अच्छा न होता तो
तुम्हारा ये बेलन मेरे सर पे यूँ न पडा होता
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------
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