मेरी तन्हाई पे हँसता हुआ शोर
तेरी पाजेब की झंकार लगे है
सहमा सहमा खिला हुआ गुलाब
जाने क्यूँ मुझको अंगार लगे है
क्षितिज पे डूबता हुआ आफताब
मुझको धरती का श्रींगार लगे है
मुकेश इलाहाबादी -------------------
तेरी पाजेब की झंकार लगे है
सहमा सहमा खिला हुआ गुलाब
जाने क्यूँ मुझको अंगार लगे है
क्षितिज पे डूबता हुआ आफताब
मुझको धरती का श्रींगार लगे है
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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