तेरे ख्वाब,
लोरियां सुनाते हैं
रात,
तब हम सो पाते हैं
यूँ तो कारवाँ
मंजिल के रुख पे है
पर लगता है
हम खोये जाते हैं
हर सिम्त अँधेरा ही
अँधेरा है, वो तो
तेरी यादों के
कंदील जगमाते हैं
चेहरे पे थकन
और गर्द की परतें हैं
वो तो, ख्वाबे वस्ल है
जो इन्हें पोछ जाते हैं
मुकेश इलाहाबादी ---
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