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Friday, 3 May 2013

तुमसे कितनी बार कहा



















तुमसे कितनी बार कहा
यूँ रेत् पे तुम नाम लिख के
अपने ख़्वाबों का घरौंदा न बनाया करो
वरना ये ज़ालिम समंदर और
बेख़ौफ़ हवाएं हर बार
तेरे ख्वाब तुझसे छीन ले जायेंगे 
और फिर तू
हथिलियों मे मुह छुपा के रोयेगी
या फिर अकेले मे सिसकियाँ लेगी
लिहाजा इस बार तू 
मेरे सीने पे,
उँगलियों की पोरों को
अपनी साँसों मे डूबा के
अपना और मेरा नाम लिखना
फिर हौले हौले
अपनी पसंद का घरौंदा कह सुनाना
फिर देखता हूँ .
तेरे ये ख्वाब कौन तोड़ता है

मुकेश इलाहाबादी ------------

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