कौन कहता है, हम तुझसे जुदा हैं ?
तू अपनी जुल्फों मे तो देख
खुशबू सा बसे हैं, ज़रा
अपनी पलकों मे तो देख
काजल सा रचे बसे हैं
अपनी आखों मे तो देखो
मासूम शरारत लिए दिए बैठा हूँ
अपने ने मूंगे जैसे होठो पे तो नज़र डालो
ये, मुहब्बत बन के कौन गुनगुनाता है ?
फिर भी तेरी शिकायत है
की मै तुझसे जुदा हूँ
तो चल रात ख़्वाबों के घोड़े पे
उड़ के आ जाऊँगा
फिर भी दिल न भरे तो
जिस दिन तू बुलायेगी
अपनी दो टकिया दी नौकरी
छोड़ के तेरे पहलू मे
चला जाऊंगा
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
No comments:
Post a Comment