ऑखों मे ये वीरानी अच्छी नही लगती
तेरे चेहरे पे उदासी अच्छी नही लगती
कि लौट आओ दिले मकॉ सूना सूना है
शामो सहर वीरानी अच्छी नही लगती
सुलझा दूं तेरी ये उलझी - उलझी जुल्फें
ये लटें बिखरी बिखरी अच्छी नही लगती
आओ फिर से जला लें चरागे मुहब्ब्त कि
स्याह नागन सी तीरगी अच्छी नही लगती
मुहब्ब्त भी क्या अजब शै होती है मुकेश
इक पल की भी दूरी अच्छी नही लगती
मुकेश इलाहाबादी .......................
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