Pages

Wednesday 14 August 2013

अभी तो शाम का झुटपुटा है


अभी तो शाम का झुटपुटा है
फिर क्यूं अंधेरा इतना घना है

तीरगी ही तीरगी बच गयी कि
दिन का उजला छिन गया है

जमी तो पहले ही बिक चुकी
अब आसमॉ भी बट गया है

सैकडों लोग भूख से मर गये
औ अनाज गोदामो मे भरा है

हमारा खून क्यूं खौलता नही
सरहद पे भाई शहीद हुआ है

मुकेश  इलाहाबादी ...............

No comments:

Post a Comment