अभी तो शाम का झुटपुटा है
फिर क्यूं अंधेरा इतना घना है
तीरगी ही तीरगी बच गयी कि
दिन का उजला छिन गया है
जमी तो पहले ही बिक चुकी
अब आसमॉ भी बट गया है
सैकडों लोग भूख से मर गये
औ अनाज गोदामो मे भरा है
हमारा खून क्यूं खौलता नही
सरहद पे भाई शहीद हुआ है
मुकेश इलाहाबादी ...............
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