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Wednesday 9 October 2013

हर बार वही होती है

हर बार वही होती है
सरकार वही होती है

शिर बदल जाते हैं पै
तलवार वही होती है

कश्ती कोई भी डूबे है
मझधार वही होती है

हथकड़ी सोने की सही
झनकार वही होती है

ज़ुल्म सहे औरत और
शरमशार वही होती है

मुकेश इलाहाबादी ---

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