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Sunday 20 October 2013

झूठ और फरेब से सने हैं,,

झूठ और फरेब से सने हैं,,
जाने किस माटी के बने हैं

बेशरम के पेड़ हो गए हम
तभी यत्र तत्र सर्वत्र तने हैं

बेवज़ह लड़ रहे भाई भाई
सभी तो भारत माँ के जने हैं

वे अपने दुःख से नही दुखी
ज़माने के सुख से अनमने हैं

दहकते सूरज की तपन है
मगर उम्मीद के साए घने हैं

मुकेश इलाहाबादी --------------

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