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Saturday 19 October 2013

हालात से समझौता करना नही आया

हालात से समझौता करना नही आया
अपने हक के लिए लड़ना नहीं आया

पिंजड़े में बैठ कर परों को तौलता रहा
खुले  आसमान मे उड़ना नहीं आया

सैकड़ों बार लिख लिख के काट दिया
ख़त इक प्यारा सा लिखना नहीं आया

अपनों ने काटा और तूफ़ान ने तोडा पर
तिनके सा झुक के फिर तनना नहीं आया

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

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