Pages

Sunday 26 January 2014

उनकी ऑखों में दर्द के गुहर नज़र आये है

उनकी ऑखों में दर्द के गुहर नज़र आये है
गुलशन के फूल बेरंग बेनूर नज़र आये है
इक मुद्दत के बाद हाल पुछा है जनाब ने
कि लम्बी रात के बाद सहर नज़र आये है
दूर - दूर तक रेत है तपन है और तन्हाई है
ज़िंदगी हमें मुस्किल सफ़र नज़र आये है

मुकेश इलाहाबादी --------------------------

No comments:

Post a Comment