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Monday 27 January 2014

SWATANTRATA DIWAS PER MERE BHEE DO SHABD


श्रद्धेय अतिथगण एवं बाल मित्रों,
आप सभी को स्वाधीनता दिवस की 65वीं वर्षगाठं की बहुत बहुत शुभकामनाएं। मित्रों मुझे यह बडी अजीब बात लगती है कि हम लोग बिना स्वाधीनता का अर्थ जाने ही स्वाधीनता दिवस मनाते रहते हैं और बिना स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझे स्वतंत्रता दिवस मनाते रहते हैं। मेरे देखे स्वाधीनता का अर्थ है जो ‘स्व’ के आधीन हो और स्वतंत्रा को अर्थ होता है जो स्व के तंत्र मे स्थित हो। और विडंबना ये भी है कि हम लोग न तो स्व को जानते हैं न अपने तंत्र को जानते हैं और नही ही अधीनता वह परतंत्रता के वास्तबिक अर्थो मे समझते हैं।
मेरे देखे स्वतंत्रता और परतंत्रता एक ही सिक्के के दो पहलू है। बिना परतंत्रता के स्वतंत्रता अराजक हो जाती है तो निखालिष परतंत्रा सारे विकास को अवरुद्ध कर देती है। शायद इसी कारण भारतीय मनीषा से इन दोनो बातों को जानकर ही इन दोनेा अदभुत शब्दों का श्रजन किया है। और मेरा भी मानना है कि इनसान को स्वतंत्रा होनी चाहिये विचार की भाव की रहने की खाने की कमाने की । मगर साथ ही धर्म की संस्कार की समाज के नियमों के प्रति आधीनता भी होनी चाहिये। तभी एक सभ्य सुसंस्क्रत और खूबसूरत समाज की कल्पना सार्थक हो सकती है। एक बात और कहना चाहूंगा कि हम स्वतंत्रता और स्वाधीनता के वास्तविक अथो्र को हम तभी समझेंगे जब हम स्व को समझेंगे।
मित्रों एक बात और हम लोग स्वाधीनता और स्वतंत्रता दिवस मनाते हुए हर बार यह कहना नही भूलते कि यह स्वतंत्रता और स्वाधीनता हमने अंग्रेजो की सेकडों साल की गुलामी के खिलाफ लड के पायी है। मित्रों हमने गोरे अंग्रेजों से तो लड लिया वो दूसरे थे पर अब इन काले अंगेंजों से कैसे लडेंगे ? ये तो अपने ही हैं। दूसरों से लडना आसान होता है और अपनों से लडना मुस्किल होता है। और अक्सर हम दूसरों से तो जीत जाते हैं पर अपनो से हार जाते हैं। तो दोस्तों अब हमे वास्तविक स्वतंत्रता और स्वाधीनता पाने के लिये एक और लडाई लडनी पडेगी वह लउाई अंगोजों के खिलफ नही अंग्रंजियत के खिलाफ हो। मै टाई और कोट वाली अंगेजियत की बात नही कह रहा। अंगंजी बोलने और डाइनिंग टेबल मे खाने वाली अंगेजियत की बात नही कर रहा। मे बात कर रहा हूं अंगेजी विचारधारा की अंगेजी मानसिकता की उस अंगेजी विकास की अवधारणा की जो हम विकास की जगह विनास की ओर ले जा रही है। और हम बिना सोचे समझे ही उस विनाश  की तरफ बढे जा रहे हैं।
मित्रों मेरे कहने का तातर्पय है कि जब हम स्व को समझेंगे तभी हम अपनी संस्क्रति को समझेंगे अपनी विचारधारा को समझेंगे तभी हम सर्वे  भवंतु सुखीन, सर्वे भवंतु निरामया  की महान र्दाषनिकता को समझेंगे। स्वतंत्रता और स्वाधीनता के वास्तविक अथों को समझेंगे।
मित्रों मै बार बार कहता हूं कि मै अंगेजों के खिलाफ नही हूं अंग्रेजियत के खिलाफ हूं। क्यांकि अंगेज जब सारी मानवता की बात करता है तो वह ‘ग्लोबलाइजेषन’ की बात करता है। जिसमे वह चाहता है कि एषिया से लेकर अमेरिका तक और अफ्रीका से लेकर आस्टेंलिया तक हमारा ही मजंन बिके हमारा ही इंजन बिके। वह व्यापार की बात करता है बाजार की बात करता है नफा नुकसान की बात करता है। नतीजा बाप बेटे से पूछता है मैने तुम्हे इतना पढाने लिखाने का क्य फायदा? पत्नी पति से कहती है तुम्हारे साथ ष्षादी करने से हमे क्य मिला ? और लडकी ष्षादी के पहले सोचती है लडके का सैलरी पैकेज क्या है ? और उधर जब हमारी भारतीय चेतना मानवता की बात करती है तो कहती है ‘वसुघैव कुटुम्बकम’ की बात करता है। पूरी प्रथ्वी को एक घर और  परिवार जैसा बनाने की बात करता है। जिसमे व्यापार की बात नही घरबार की बात होती है। त्याग की बात होती है बलिदान की बात होती है।
अँगरेज़ प्रतियोगिता की बात करता है,आगे बढ़ो आगे बढ़ो चाहे किसी की जान लो चाहे किसी की टांग खींचो चाहे बड़ी रेखा को मिटा के अपनी रेखा बड़ी करो पर हमेशा आगे रहो।  जबकि भारतीय चेतना प्रतियोगिता की बात ही नहीं करता वह जानती है कि प्रत्येक आगे का बिंदु अपने आगे वाले बिंदु से पीछे है और उसके आगे वाला बिंदु अपने आगे के बिंदु से पीछे है।  इस लिए भारतीय चेतना प्रतियोगिता की बात ही नहीं करता वह बात करती है खिलने की जैसे एक फूल दुसरे फूल से ज़यादा सुन्दर होने की होड़ नहीं रखता वह तो बस खिलता है मुसकराता है खुशबू बिखेरता है और पूरी त्वरा से खिल कर खुश हो जाता है।  मित्रों इसी लिए भारतीय चेतना  कमल सा फूल सा खिलने की बात करता है।
लिहाजा मित्रों मै इसी अंगेजियत से लडने की बात करता हूं।
न कि टाई और कोट वाले अंग्रेज की बात करता हूं।
यही नही मित्रों जब अंग्रेज बात करता है तो वह विज्ञान की बात करता है और भारतीय चेतना जब बात करती है तो वह ज्ञान की बात करती है। मै चिज्ञान के विरोध मे नही हूं मगर उस उस विज्ञान के विरोध मे हूं जो हम विकास नही विनास की ओर ले जा रहा है जो विज्ञान हमे पहले तो सूख सा लगता है बाद मे अनंत दुख मे तब्दील हो जाता है। जबकि ज्ञान भले ही पहले दूख सा लगे पर बाद मे अनंत सुख मे तब्दील हो जाता है। इस बात को आप एसे समझें।
ज्ञान और विज्ञान दो तरीके हैं किसी बात को जानने और समझने के।
विज्ञान चीजों को समझता है तोड तोड के ओर ज्ञान समझता है जोड जोड के।
एक फूल को समझना हो तो विज्ञान उसे तोडेगा तो। उसकी एक एक पंखुडी तोड के उसे टुकडे टुकडे करेगा। छोटे छोटे टुकडे करेगा। बहुत छोटे छोटे टुकडे यहां तक कि ऑखों से न दिखने वाले टकडों मे तब्दील करेगा। इलेक्ट्रान प्रोटान पाजिट्रन बानयेगा तोड तोड के क्वार्क बनायेगा और फिश्र तोडे के ‘गाड पार्टिकल’ पायेगा। और पार्टिकल पाके एक बडे टुकडे का बहुत छोटा टुकडा पा के खुष हो जोयेगा। पर गाड नही पा पायेगा। और उसे गाड पाटिंकल कह के खुष होलेगा। एक फूल को तोडे के प्रसन्न हो लेगा कि हमने बहुत कुछ जान लिया।
जबकि भारतीय चेतना यह जानती है कि तोडने से नही जोडने से मिलेगा। जोड जोड के वह महाजोड बनायगा माहायोग बनायेगा जिससे कर्मयोग बनायेगा भक्ति योग बनायेगा सांख्य योग बनायेगा। और फिर गाड को जानेगा ही नही स्वयं गाड बनजायेगा और कह उठेगा ‘अंह ब्रम्हास्मि’ 
मित्रों इसलिये मै विज्ञान की नही ज्ञान की बात कहता हूं। तोडने की नही जोडने की बात कहता हूं। ग्लोबलाइजेषन नही वसुधैव कुटुम्बकम की बात कहता हूं।
तो मित्रों हम पुरी वसुधा को मंडी नही कुटुम्ब बनाना है। विज्ञान की नही ज्ञान की बात कहना है जो हमे तोडती नही जोडती है और यह सब तभी सम्भव है जब हम योग की बात करें भारतीयता की बात करं स्व की बात करें जो। स्व से उठकर हम हो जाता है। अहम ब्रम्हास्मि हो जाता है।
यह सब तभी सम्भव है जब हम स्व को उसके वास्तविक अथों मे समझें वर्ना हम 65 नही 65000 सालों तक यूं ही स्वाधीनता दिवस और स्वतंत्रता दिवस मनाते रहेंगे। झंडे फहराते रहेंगे राष्टीय गान और गीत गा के लडडू खा के एक बार फिर अपने अपने घरों को चले जाते रहेंगे फिर फिर स्वतंत्रता दिवस स्वाधीनता दिवस मनाने के लिये और कभी राजनैतिक कभी आर्धिक कभी मानसिक गुलामी मे जकडते जाते रहेंगे। 
और अंत में यही कहना चाहूंगा कि जिस दिन हम जिस दिन अपने स्व को कमल सा खिल लेंगे तभी सच्चा स्वाधीना मना पाएंगे पाएंगे और शायद तभी हम  आज़ादी की लड़ाई में मरने वाले वीरों को सच्ची सृद्धांजली दे पाएंगे।

एक बार पुनः इस पावन पर्व की ढेरों शुभ कामनाएं दे कर अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा।

मुकेश इलाहाबादी --------------------------




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