ग़रीबी ओढ़ता मज़बूरी बिछाता हूँ
सुबह से शाम तक रिक्शा चलाता हूँ
याद करता हूँ माँ बाप बीबी बच्चे
फिर कुछ सोचकर लौट आता हूँ
शहर में दंगा और जुलूस के बीच
मुश्किल से दो चार पैसे कमाता हूँ
राशन किराया औ बच्चों की फीस
आंधी - तूफ़ान में भी मुस्कुराता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ------------------
सुबह से शाम तक रिक्शा चलाता हूँ
याद करता हूँ माँ बाप बीबी बच्चे
फिर कुछ सोचकर लौट आता हूँ
शहर में दंगा और जुलूस के बीच
मुश्किल से दो चार पैसे कमाता हूँ
राशन किराया औ बच्चों की फीस
आंधी - तूफ़ान में भी मुस्कुराता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ------------------
No comments:
Post a Comment