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Saturday 11 January 2014

तुम भी तो बदल गये

वक्त का तकाज़ा था
हमको चुप रहना था

तुम भी तो बदल गये
तुमको तो बोलना था

कब तक चराग लड्ता
ज़ोरे तूफान ज़्यादा था

वज़ह दशहत गरदी थी
सड्कों पे सन्नाटा था

रात की तीरगी मे भी
उम्मीद का उज़ाला था

आफताब के चेहरे पे
गाढा काला धब्बा था

मुहब्बत की ज़ुस्त्ज़ूं मे
अपना भी कारवां था

रात आस्मां से जो टूटा
वो मासूम सितारा था

खुद् ग़रज़ों के शहर मे
मुकेश एक मशीहा था

मुकेश इलाहाबादी ---

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