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Monday, 28 April 2014

लिक्खाडों की जातियां व प्रजातियां




संसार  में जिस तरह जीव जंतुओं, पेड़ पौधों और इन्सानों की अनेक जातियां व प्रजातियां प्राप्त होती हैं। उसी तरह लिक्खाडों की भी कई प्रजातियां होती हैं। जिनका एक वर्गीकरण लेखन विषय को लेकर है जिससे तो लगभग सभी सुधीजन परिचित हैं जिन्हे हम कवि, कहानीकार, आलोचक , पत्रकार के रुप में जानते हैं। इसके अलावा मै आपसे एक और वगींकण के बारे में आपसे बात करना चाहूँगा, जो  इन लिक्खाडों की प्राबित्तिनुसार  किया गया है।

जन्हे आप निम्न वगींकरण मे बांट सकते हैं।

एक ..  पेशेवर  लिक्खाड
दो ..   घोर सहित्यिक लिक्खाड
तीन.. आदर्शवाशी लिक्खाड
चार ..  शौकिया लिक्खाड


पहला --- पेशेवर  लिक्खाड

लेखकों की यह वह प्रजाति है जो लगभग सभी पत्र पत्रिकाओं के आफिस में या गाहे बगाहे फ्री लांसर के रुप में भी पाई जाती है। यह लिक्खाडों की वह प्रजाति होती है। जिसके पास हर वक्त हर विषय पे लेखन सामग्री तैयार होती है। और अगर नहीं भी होती है तो आप अपना आर्डर दे कर अपनी पसंदानुसार लेख कहानी कविता निबंध आदि कुछ भी लिखवा सकते हैं। इनके पास हर जानकारी का खजाना तैयार रहता हैं। यह पाक शास्त्र  से लेकर काम शास्त्र तक किसी भी विषय पे साधिकार लिख सकते हैं। नैतिकता अनैतिकता सहित्यकता असाहित्यकता और सुचिता आदि का बहुत ज्यादा स्थान नहीं होता है। इन्हे र्सिफ अपनी मेहनत व लेखन के बदले मिलने वाले पुरुष्कार से मतलब व गरज रहता है।

यही प्रजाति ऐसी है जो समाज में सबसे ज्यादा लेखन सामग्री परोसती है। अगर यह प्रजाति न होती तो शायद हमारी साहित्य व लेखकीय विरादरी काफी गरीब होती। इसके अलावा यही वह प्रजाति है जो साहित्यिक और मानसिक भूख को पूरा करने के लिये सबसे ज्यादा उत्पानद करती है।

दूसरा ---  घोर साहित्यिक लिक्खाड

लिक्खाडों की यह वो प्रजाति है जो अपने को सबसे सुपर मानती है। इस प्रजाति की मानसिकता होती है कि अगर ये न होते तो समाज की छाती से साहित्य उठ गया होता। ये ही हैं जो अपनी लेखनी की झाडू से साहित्य संस्क्रति के आकाष को थामे हैं वर्ना वह कब को फलक से गिर के धरातल मे समा गया होता।
यह एक गवींली प्रजाति होती है। इस प्रजाति के लोग जहां भी जाते हैं वहां ये अपने लिये मान सम्मान और मंच की आकांक्षा रखते हैं। और ऐसा न होने पर अपने को अपमानित महसूस करते हैं।
इस जाति के लोग अक्सर अपनी एक दो रचना की क्रेडिबिलटी पे सारी उम्र जुगाली करते और खाते रहते है और सतत अपने लिये किसी न किसी सम्मान व पुरुष्कार की जुगत भी लगाते पाये जाते हैं। अमूमन ये कुछ कुछ गवींली होती है जो नये लिक्खाडों को बहुत तवज्जों नही देती और देती भी है तो एहसान की तरह या गुरुडम के भाव से देती है।
इस प्रजाति के लोग अक्सर वाद और गुटों मे भी बटे पाये जाते हैं जो अपने ही गुट में खुष नजर आती हैं। इनकी नजर मे दूसरा गुट वाला समाज की नब्ज को ठीक से न पहचानने वाला होता है।
तमाम गुणो व अवगुणों के बावजूद इस प्रजाति का साहित्य मे अपना एक योगदान रहता है जिसे नकारा नहीं जा सकता

तीसरा  --- आदर्षवादी लिक्खाड

लिक्खाडों की यह तीसरी और अलग थलग रहने वाली प्रजाति कम पर लगभग सभी जगह पायी जाती है। इस जाति के लोग यह मान के चलते हैं कि साहित्य व लेखन व समाज से  आर्दष की भावना कम होती जा रही है जो मानव सथ्यता व संस्क्रिति के लिये बडा खतरा है और इस खतरे के खिलाफ ये सतत अपनी आदर्षवादी कलम रुपी तलवार से लडते रहते हैं। नीति व सदविचार समाज में परोसते रहते हैं। इस प्रजाति में धार्मिक प्रब्रत्ति के लोग ज़्यादातर  पाये जाते हैं। यह अलग बात इनमे ये बहुतायत खुद अपनी जिंदगी में आदर्षवादिता से कोषों दूर होते हैं।
खैर फिर भी इनकी भावना और क्रत्य को देखते हुए इस प्रजाति के कायों की समाज में अपनी उपादेयता है।

चौथा ... शौकिया लिक्खाड

यह प्रजाति भी समाज के सभी तबकों में पायी जाती है। इस प्रजाति के लोग अपनी अपनी रुचि और प्रब्रत्ति के अनुसार लिखते पाये जाते हैं। आज कल सोशल नेटवर्क साइटस और फेसबुक की वजह से इनकी संख्या में बहुत तेजी से इजाफा होता जा रहा है। अक्सर इस जाति के लोगों की आदत सिर्फ लिखना और फिर घूम घूम के अपने लिखे को सुनाना पढवाना और छपवा कर खुष हो लेता ही उददेष्य होता है। यह प्रजाति पढने पे कम और लिखने पे ज्यदा विस्वास करती है। इस प्रजाति के लोग कुछ भी और कैसा भी लिख के प्रसन्न हो लेते हैं। इनमे कवि कहानीकार और राजनीतिक समीक्षक ज्यादा पाये जाते हैं।

इन चार के अलावा भी हो सकता है समाज मे और जाति प्रजाति के लिक्खाड मौजूद होंगे जो कि शोध का बिषय बन सकता है।

मुकेश इलाहाबादी -------------------------------


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