सभी तो बेलिबास दिख रहे जँहा जाऊं
फिर मै ही क्यूँ अपनी उरनियाँ छुपाऊँ
मरहम ले के आये हो तो बताओ वरना
बेवज़ह ज़ख्म अपना तुम्हे क्यूं दिखाऊँ
हर शख्स तो बौना दिखाई देता है यंहा
फिर भला किस दरपे सर अपना झुकाऊँ
अपना जिस्म खुद से सम्हाला जाता नहीं
अब ग़म तेरे जाने का किस तरह उठाऊं
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
फिर मै ही क्यूँ अपनी उरनियाँ छुपाऊँ
मरहम ले के आये हो तो बताओ वरना
बेवज़ह ज़ख्म अपना तुम्हे क्यूं दिखाऊँ
हर शख्स तो बौना दिखाई देता है यंहा
फिर भला किस दरपे सर अपना झुकाऊँ
अपना जिस्म खुद से सम्हाला जाता नहीं
अब ग़म तेरे जाने का किस तरह उठाऊं
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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