एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Monday, 28 April 2014
अभी भी हरहरता है
अभी भी
हरहरता है
अंतश में
बेचैन सागर
वाष्प बनकर
उड़ जाने को
अनंत आकाश में
तमाम कोशिशों के
बावजूद
तप्त सूर्या रश्मियाँ
लौट जाती हैं
महज़ चमड़ी को
सुखाकर
मुकेश इलाहाबादी ------
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