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Monday, 26 May 2014

खामोश समंदर में

एक ---

मेरे, उसके बीच
बहता है
एक खामोश दरिया
जिस पे कोई पुल नहीं है
चाहूँ तो
शब्दों के खम्बो
वादों के फट्टों का
पल खड़ा कर सकता हूँ
मगर
मुझे अच्छा लगता है
 दरिया में
उतारना खामोशी से
और फिर
डूबते उतराते
उतर जाना उस पार

दो ----

अनवरत
चल रहा हूँ
नापता
शब्दों की सड़क
ताकि पहुंच सकूँ
अंतिम छोर तक
कूद जाने के लिए
एक खामोश समंदर में
हमेशा हमेशा के लिए

मुकेश इलाहाबादी -----------

उस पार

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