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Tuesday 17 June 2014

यादों के आस पास गुज़री

यादों के आस पास गुज़री
मेरी हर शाम उदास गुज़री

नज़रें उस - उस तरफ घूमीं
जिस-जिस तरफ वो गुज़री

कभी जागे कभी लेटे तो बैठे
बड़ी मुस्किल से शब गुज़री

ज़िदंगी इक रेत का जंगल
वह  नहर की तरह गुज़री

कैसे कह दूँ , खुश हूँ मुकेश
ज़िंदगी ही ग़मगीन गुज़री

मुकेश इलाहाबादी -----------

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