साथ कुल्हाड़ी रखता है
ज़ुबाँ से वार करता है
कुछ तो बात हुई होगी
जो तन्हा-तन्हा रहता है
जिस्म पत्थर बना लिया
अब गर्मी सर्दी सहता है
दिल मे अपने आग लिए
दरिया - दरिया फिरता है
लोग ख़फा हो जाते हैं
जब कोई सच कहता है
मुकेश इलाहाबादी ------
ज़ुबाँ से वार करता है
कुछ तो बात हुई होगी
जो तन्हा-तन्हा रहता है
जिस्म पत्थर बना लिया
अब गर्मी सर्दी सहता है
दिल मे अपने आग लिए
दरिया - दरिया फिरता है
लोग ख़फा हो जाते हैं
जब कोई सच कहता है
मुकेश इलाहाबादी ------
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