रिश्तों में थोड़ी तो आंच बचाये रखिये,
सिलसिला मुलाक़ात का बनाए रखिये
बहार तो तुम्हारे घर भी आ जायेगे, बस
मुहब्बत के दो चार फूल खिलाये रखिये
साँझ से ही घर में अँधेरा अच्छा नहीं
कम से काम इक चराग जलाये रखिये
नफरत की आग सब कुछ झुलसा देगी
मुहब्बत का इक दरिया बहाये रखिये
मुकेश होठों पे तुम कोई भी तराना रखो
दिल में मगर सब के लिए दुआएं रखिये
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
सिलसिला मुलाक़ात का बनाए रखिये
बहार तो तुम्हारे घर भी आ जायेगे, बस
मुहब्बत के दो चार फूल खिलाये रखिये
साँझ से ही घर में अँधेरा अच्छा नहीं
कम से काम इक चराग जलाये रखिये
नफरत की आग सब कुछ झुलसा देगी
मुहब्बत का इक दरिया बहाये रखिये
मुकेश होठों पे तुम कोई भी तराना रखो
दिल में मगर सब के लिए दुआएं रखिये
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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