एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Friday, 4 July 2014
फ़लक़ ऐ ज़ीस्त में कभी सूरज भी तुलू होगा ?
फ़लक़ ऐ ज़ीस्त में कभी सूरज भी तुलू होगा ?
तेरी ज़ुल्फ़ों के छाँव में हमने ये सोचा ही नहीं !
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------
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