Pages

Friday 4 July 2014

हर शख्श रोता मिला जहां जाऊं

हर शख्श रोता मिला जहां जाऊं
ग़म लेकर मै अपना कहाँ जाऊं ?

तुम्ही बताओ ऐसा कौन सा दर है
जहाँ कोई ग़म न हो, मै वहाँ जाऊं

सूना है अंगूर की बेटी खुश रखती है 
सोचता हूँ एक दिन उसके यहां जाऊं

ग़र तुम्हे गैरों से फुरसत मिल जाए
फिर भला क्यूँकर  मै यहां-वहाँ जाऊं

सुनाने के लिए मेरे पास चंद लतीफे हैं
किस किस को हंसाने कहाँ कहाँ जाऊं

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

No comments:

Post a Comment