हर शख्श रोता मिला जहां जाऊं
ग़म लेकर मै अपना कहाँ जाऊं ?
तुम्ही बताओ ऐसा कौन सा दर है
जहाँ कोई ग़म न हो, मै वहाँ जाऊं
सूना है अंगूर की बेटी खुश रखती है
सोचता हूँ एक दिन उसके यहां जाऊं
ग़र तुम्हे गैरों से फुरसत मिल जाए
फिर भला क्यूँकर मै यहां-वहाँ जाऊं
सुनाने के लिए मेरे पास चंद लतीफे हैं
किस किस को हंसाने कहाँ कहाँ जाऊं
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
ग़म लेकर मै अपना कहाँ जाऊं ?
तुम्ही बताओ ऐसा कौन सा दर है
जहाँ कोई ग़म न हो, मै वहाँ जाऊं
सूना है अंगूर की बेटी खुश रखती है
सोचता हूँ एक दिन उसके यहां जाऊं
ग़र तुम्हे गैरों से फुरसत मिल जाए
फिर भला क्यूँकर मै यहां-वहाँ जाऊं
सुनाने के लिए मेरे पास चंद लतीफे हैं
किस किस को हंसाने कहाँ कहाँ जाऊं
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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