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Sunday, 20 July 2014

हर शख्श बेक़रार क्यूँ है

हर शख्श बेक़रार क्यूँ है
रिश्तों में ये  दरार क्यूँ है

अब हमें सोचना ही होगा
हर दिल में बाज़ार क्यूँ है

जिसने भी मुहब्बत की है
वो दिल गुनहगार क्यूँ है

पैसों से शुकूं मिलता नहीं
फिर भी तलबगार क्यूँ है

मुकेश तुम बेचैन रहते हो
आखों में ये इंतज़ार क्यूँ है

मुकेश इलाहाबादी -----------

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