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Monday, 7 July 2014

कभी तो तनहा भी रहा कीजिये

कभी तो तनहा भी रहा कीजिये
ज़िदंगी को यूँ भी जिया कीजिए

इतनी मशरूफ़ियत अच्छी नहीं
कभी तो बेवज़ह भी घूमा कीजिए

हमेशा मतलब से  ही  मिलते हो ,,
कभी बेमक़सद भी मिला कीजिए

सूरज ढल गया अभी ऑफिस में हो
साँझ तो अपने घर में रहा कीजिये

खबर तो रोज़ सूना करते हो कभी
अपनों का भी दुःख दर्द सुना कीजिए 

मुकेश इलाहाबादी -----------------

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