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Thursday, 31 July 2014

रात खूं आलूदा हो गयी

रात खूं आलूदा हो गयी
चांदनी ख़फ़ा हो गयी

रो दिए तुम,बाद उसके
शाम ग़मज़दा हो गयी

दोस्त जब से तुम गए
ज़िंदगी बेमज़ा हो गयी

कंही चैन मिलता नहीं
हर बात बेमज़ा हो गयी

इक बार बता तो जाते
मुझसे खता क्या हो गयी 

मुकेश इलाहाबादी ----

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