शहर ग़मज़दा था
कुछ तो हुआ था
हर इंसान चुप था
हर शख्श ख़फ़ा था
हवाएं बोलती थी
सन्नाटा चीखता था
वह घर जा रहा था
बेक़सूर मारा गया था
मुकेश तुम चुप रहो
कितनी बार कहा था
मुकेश इलाहाबादी ---
कुछ तो हुआ था
हर इंसान चुप था
हर शख्श ख़फ़ा था
हवाएं बोलती थी
सन्नाटा चीखता था
वह घर जा रहा था
बेक़सूर मारा गया था
मुकेश तुम चुप रहो
कितनी बार कहा था
मुकेश इलाहाबादी ---
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