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Thursday 10 July 2014

हुस्न मे उसके दरिया सी रवानी

हुस्न मे उसके दरिया सी रवानी
देखी नही मैने उसकी सी जवानी

पल भर भी जुदा होने नही देती
ज़माने मे नही उसकी सी दीवानी

चाँदी सी रंगत और सोने से बाल
लगती है मुझको परियों की रानी

हर अंदाज़ नज़ाकत नफ़ासतभरा
बातों मे उसके मुहब्बत की कहानी

फैला दे जुल्फ तो छाँव ही छाँव
तपते हुए मौसम मे शाम सुहानी

मुकेश इलाबाबादी ----------------

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