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Sunday 31 August 2014

मुहब्बत की नई परिभाषा बना लो

मुहब्बत की नई परिभाषा बना लो
आओ ज़रा हमसे मेल जोल बढ़ा लो

मेरी ग़ज़ल सुनो सुन के मुस्कुरा दो
अपनी हंसी कुछ और हसीं बना लो

तुम्हारे चेहरे पे नमकीन कशिश है
थोड़ा प्यार की सोंधी खुशबू बसा लो

फलक से तोड़ के लाया हूँ मै ये जो
इन सितारों को आँचल में सजा लो

ख़ाके सुपुर्द हो के फूल सा खिल गया
इस फूल को अपने गज़रे में लगा लो

मुकेश इलाहाबादी -------------------

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