अच्छी हो या कि बुरी कट ही जाएगी
ज़िदंगी का क्या है ? गुज़र ही जाहेगी
सुबह से लेकर शाम तक चल रहे हैं तो
कभी न कभी मंज़िल मिल ही जाएगी
तनहा हैं तो तनहा ही रह लेंगे उम्रभर
तबियत का क्या है बहल ही जाएगी
आखिर कब तक सिर पटकती रहेंगी
उदास हो के उदासी भी लौट ही जाएगी
उम्र सारी मुफ़्लासी में गुज़री तो क्या ?
मुकेश दो गज़ ज़मीन मिल ही जाएगी
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
ज़िदंगी का क्या है ? गुज़र ही जाहेगी
सुबह से लेकर शाम तक चल रहे हैं तो
कभी न कभी मंज़िल मिल ही जाएगी
तनहा हैं तो तनहा ही रह लेंगे उम्रभर
तबियत का क्या है बहल ही जाएगी
आखिर कब तक सिर पटकती रहेंगी
उदास हो के उदासी भी लौट ही जाएगी
उम्र सारी मुफ़्लासी में गुज़री तो क्या ?
मुकेश दो गज़ ज़मीन मिल ही जाएगी
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
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