ज़िंदगी भर यही करते रहे
दिल रोया हम हँसते रहे
मिली सड़क अंगारों की
पाँव नंगे हम चलते रहे
कभी तो मंज़िल मिलेगी
सोच कर यही बढ़ते रहे
आज भी अजनबी है वो
रोज़ जिससे मिलते रहे
कभी तो कोई सुनेगा ?
ग़ज़ल रोज़ लिखते रहे
मुकेश इलाहाबादी ----------
दिल रोया हम हँसते रहे
मिली सड़क अंगारों की
पाँव नंगे हम चलते रहे
कभी तो मंज़िल मिलेगी
सोच कर यही बढ़ते रहे
आज भी अजनबी है वो
रोज़ जिससे मिलते रहे
कभी तो कोई सुनेगा ?
ग़ज़ल रोज़ लिखते रहे
मुकेश इलाहाबादी ----------
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