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Thursday 25 September 2014

चोट पर चोट खाते और मुस्कुराते रहे

चोट पर चोट खाते और मुस्कुराते रहे
ज़ख्म हँसते रहे हम खिलखिलाते रहे
तुम चाँद हो तुम्हारी अठखेलियां देख
फलक के सितारे भी जगमगाते रहे
तुम हमसे बेवज़ह रूठ कर चल दिए
फिर देर तक हम तुमको पुकारते रहे
देर तक उदासियों ने घेरा था उस दिन
फिर इक उदास नज़्म गुनगुनाते रहे
जानता हूँ तुम हरगिज़ नहीं लौटोगी
दिल को झूठी तसल्ली से बहलाते रहे

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

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