Pages

Saturday 11 October 2014

ईश्क के घर में चराग़े दिल जलाये बैठे हैं

ईश्क के घर में चराग़े दिल जलाये बैठे हैं
तब से हम आग के दरिया में नहाये बैठे हैं

ज़माने की झूठी तसल्ली हमें गवारा नहीं
अपने ज़ख्म अपने सीने से लगाये बैठे हैं

जाने किस पल बुत में दिल धड़क जाए
यही सोच के पत्थर से दिल लगाये बैठे हैं

गुलबदन है छिल न जाए उसका जिस्म
महबूब के लिए हम चाँदनी बिछाए बैठे हैं

सुना है अकेले में मेरी ग़ज़ल गुनगुनाते हैं
आज उसी के लिए महफ़िल सजाये बैठे हैं

मुकेश इलाहाबादी -----------------------------

No comments:

Post a Comment