Pages

Sunday 5 October 2014

अँधेरे के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा दिया है

अँधेरे के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा दिया है
छोटा ही सही एक चराग़ जला दिया है
कुछ सिरफिरों ने गुलशन उजाड़ दिया
हमने फिर गुले मुहब्बत लगा दिया है
हमारी तरफ इक पत्थर उछाल उसने
बदले में इक गुलदस्ता भिजा दिया है
कलन्दरी रास आ गयी जिस दिन से
दौलते जहान  की हमने लुटा दिया है
यादों के सफे पे उसका नाम लिखा था
मुकेश हमने वो नाम भी मिटा दिया है

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

No comments:

Post a Comment