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Sunday 5 October 2014

ग़र तू हमसफ़र हो जाएगा

ग़र तू हमसफ़र हो जाएगा
सफर खूबसूरत हो जाएगा
प्यार इक पाक़ सी नदी है
नहाके ताज़ादम हो जाएगा
उज़डे चमन सा तेरा वज़ूद
हरा भरा चमन हो जाएगा
इक बार जो मुस्कुरा दो,तो
चेहरा गुलमोहर हो जाएगा
बादल सी ज़ुल्फ़ें झटक दो
ये सहरा समंदर हो जाएगा 

मुकेश इलाहाबादी ---------

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