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Monday, 20 October 2014

साँझ होते ही उफ़ुक़ पे जा कर खो गया है

साँझ होते ही उफ़ुक़ पे जा कर खो गया है
शायद आफताब भी थक कर सो गया है

रात ने चारों तरफ  स्याह चादर फैला दी
लोग सो गए बस्ती में सन्नाटा हो गया है

आज तक समझते रहे बहुत खुश होगा
वह भी आकर अपना दुखड़ा रो गया है

कभी होली दिवाली खुशियों का शबब थे
गरीब के लिए त्यौहार बोझ हो गया है

भले पाँव तमाम कांटो से ज़ख़्मी हो गया
मुहब्बत के बीज मगर मुकेश बो गया है

मुकेश इलाहाबादी --------------------------

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