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Thursday 30 October 2014

बादलों की ज़मीं पे ग़ज़ल लिख दिया

बादलों की ज़मीं पे ग़ज़ल लिख दिया
यूँ कि चाँद को हमने ख़त लिख दिया
साँसों में बेला, चमेली, रात रानी झरे
नाम हमने उसका महक लिख दिया
झील सी आखों में खिलखिलाती हंसी
उस फूल को हमने कँवल लिख दिया
रूई के फाॉहों से उजले उजले आरिज़
गालों पे उसके मुहब्बत लिख दिया
मुद्दत हुई हमसे बोलता नहीं मुकेश
अब तो उसे बेवफा सनम लिख दिया
मुकेश इलाहाबादी -------------------

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