Pages

Thursday 30 October 2014

आँखे जागती हैं, ख्वाब सो गये

आँखे जागती हैं, ख्वाब सो गये
कभी बहती नदी थे,बर्फ हो गये

तमाम चेहरे बसे गये ज़ेहन में
यादों की भीड़ में हम खो गये

कभी हंसी -खुशी की मिसाल थे 
क्या थे हम और क्या हो गये ?

फूल खिला रहे थे जिनके लिए
वो ही हमारे लिए कांटे बो गये

मुकेश तमाम खुशनसीब लोग
अपना सारा दुःख मुझसे रो गये

मुकेश इलाहाबादी -------------

No comments:

Post a Comment