Pages

Thursday 20 November 2014

बदन मेरा भी रात भर सुलगता रहा

बदन मेरा भी रात भर सुलगता रहा
और चॉद मेरी बाहों में पिघलता रहा

बस इक बार मिला था उस फूल से
बाद उसके मै उम्र भर महकता रहा

यूं तो मेरी कम बोलने की आदत है
मिल के उससे देर तक चहकता रहा

मैने शराब पी नही, फिर भी जाने क्यूं
उसके घर से निकल के बहकता रहा

मुकेश ज़िंदगी कट गयी स्याह रात में
इक उम्मीद का सितारा चमकता रहा

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

No comments:

Post a Comment