जिन्दगी मेेरे दर पे सराब रख गयी
रात मेरे सिरहाने ख्वाब रख गयी
लिखा था ख़त, मैने बडी उम्मीद से
खाली स़फ़े का वह जवाब रख गयी
जब मैने उससे जवाब के लिये कहा
किताब में छुपा के गुलाब रख गयी
मुंडेर पे बैठी कोयल थी वो,उड गयी
ऑखों को गंगा और चनाब दे गयी
फिर मैने उससे बेरुखी की बात की
तमाम मुलाका़तों का हिसाब दे गयी
मुकेश इलाहाबादी --------------------
रात मेरे सिरहाने ख्वाब रख गयी
लिखा था ख़त, मैने बडी उम्मीद से
खाली स़फ़े का वह जवाब रख गयी
जब मैने उससे जवाब के लिये कहा
किताब में छुपा के गुलाब रख गयी
मुंडेर पे बैठी कोयल थी वो,उड गयी
ऑखों को गंगा और चनाब दे गयी
फिर मैने उससे बेरुखी की बात की
तमाम मुलाका़तों का हिसाब दे गयी
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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