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Monday 15 December 2014

परछियाँ उदास हैं मैदान में

परछियाँ उदास हैं मैदान में
धूप सो रही है सायबान में
 
दोपहर अपनी मस्ती में है
साँझ ऊंघ रही है दालान में
 
दिल का चैनो शुकूं ढूंढता हूँ
तेरी यादों के बियाबान में
 
शहर की आपाधापी से दूर
आ बैठा हूँ इस सूनसान में
 
मुकेश आज के युग में तुम
सच्चाई ढूंढते हो इंसान में

मुकेश इलाहाबादी --------

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